मधुर चालीसा
मधुर चालीसा
दोहा-
मीठी-मीठी बात कर, हो बातों में स्वाद।
मीठी बोली से करो,दुनिया को आबाद।।
मीठी वाणी में बसत,सदा प्रेम की गंध।
स्वतः सुवासित इत्र यह,मीठी शीत सुगंध।।
चौपाई-
मधुर-मधुर अति मधुर मधुरतम।
सर्व सुखाय सहज सर्वोत्तम।।
मस्तक मधुर महक जाने दो।
सात्विक शिव समाज आने दो।।
मधुरामृत रस जब टपकेगा।
मधुमय सारा लोक बनेगा।।
मधुर शब्द का होगा गुंजन।
मादक काव्यों का तब पूजन।।
मधुर-मधुर मुस्कान मात्र हो।
मधुर ज्ञानमय प्रज्ञ पात्र हो।।
मधुर प्राप्य की रहे अपेक्षा।
कटु भावों की सतत उपेक्षा।।
मोहनीयता कण-कण में हो।
अति व्यापकता जन-गण में हो।।
मधुर गद्य नित मधुर पद्य हो।
मधुराकृति में सदा अद्य हो।।
सब कर्मों में मधुर गेह हो।
प्राणिजनों में मधुर स्नेह हो।।
सब मधु बनकर सदा पिलायें।
एक दूसरे को नहलायें।।
संरचना में मोहकता हो।
मधु हृद की आवश्यकता हो।।
संस्थाओं में मधुर वास हो।
सुखद व्यवस्था का निवास हो।।
संबधों को मधुर शक्ल दो।
सबको शुभमय ज्ञान-अक्ल दो।।
बहें त्रिवेणी मधु संगम बन।
स्नान करें साधू शिव सज्जन।।
मधुर प्रेममय प्रिय मिठास हो।
शुभद वास नित मधु प्रवास हो।।
मधुर विचारों का स्पंदन हो।
मधुर सत्य का नित वंदन हो।।
मधुरिम मानव की हो धरती।
महादेव की हो यह जगती।।
मधुर काम का देवालय हो।
आत्मसंयमित सचिवालय हो।।
मधुर प्रेम का अश्रु बहे अब।
मधुर मिलन में प्रीति बहे अब।।
सहज परस्पर धाम बनेगा।
मधु रामेश्वर ग्राम मिलेगा।।
दोहा-
मधुर शब्द के भाव में, बैठ करो विश्राम।
मधु अर्थों को समझकर, जपो मधुरमय राम।।
Rajeev kumar jha
12-Dec-2022 03:43 AM
शानदार
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